उमर गुजर गुजर जाए मगर तू न सुधर पाए - MadhurBhajans मधुर भजन
उमर गुजर गुजर जाए
मगर तू न सुधर पाए
है मेरी इतनी सी
इल्तिजा रे ओ मन
तरा जाए बिना भजन भव
तरा नही जाए
है मेरी इतनी सी
इल्तिजा रे ओ मन
उमर गुजर गुजर जाए
मगर तू न सुधर पाए।।
तर्ज नजर जिधर जिधर जाए।
गुरु दर क्यो प्यारा है
आओ जरा आओ
यहाँ देखो न
जग से क्यो न्यारा है
घूमो जग सारा
फिर देखो न
आजा आजा रे मन
तू गुरू की शरण
उमर गूजर गुजर जाए
मगर तू न सुधर पाए।।
देते है वो साधन
तरने का तुझको
वो जग तारन
कर प्राणी तू सुमिरन
गुरू चरणो मे
लगा कर मन
मुक्ती को पाने का
अब तू करले जतन
उमर गूजर गुजर जाए
मगर तू न सुधर पाए।।
गुरू से जो करता है
वादा न पूरा तू करता है
आवागमन के चक्कर मे
खुद प्राणिये
तू ही फँसता है
आजा गुरू की शरण
कर प्रभू का भजन
उमर गूजर गुजर जाए
मगर तू न सुधर पाए।।
उमर गुजर गुजर जाए
मगर तू न सुधर पाए
है मेरी इतनी सी
इल्तिजा रे ओ मन
तरा जाए बिना भजन भव
तरा नही जाए
है मेरी इतनी सी
इल्तिजा रे ओ मन
उमर गुजर गुजर जाए
मगर तू न सुधर पाए।।
भजन लेखक एवं प्रेषक
श्री शिवनारायण वर्मा
मोबान8818932923
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umar gujar gujar jaye magar tu na sudhar paye