सुमिरन करले मेरे मना बीती जावे उमर हरी नाम बिना लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन










सुमिरन करले मेरे मना
बीती जावे उमर हरी नाम बिना।।
दोहा सब संतो ने विनती
अपनी अपनी थोड
वचन विवेकी पारखी
सिर माथे का मोड़।
जैसी हिरदे उपजे में
वैसी देत सुनाय
जिनका बुरा ना मानिय
इसकी कहा से लाए।
घर छोड़ के वन को वाश कियो
मन वाश को त्याग किया नहीं
पंच केश बढ़ाए धूनी तपी पर
नाम हरी को लियो नहीं।
सत संगत मन गमाय दियो
सत बोध गुरु को लियो नहीं
ए दाश सतारक कह समझ रे
मन तू प्रेम को पयालो पियो नहीं।
प्रेम ना बाड़ी निपजे
प्रेम ना हाट बिकाय
जे प्रेम हाटो बिके
नर सिर साठे ले जाए।


सुमिरन करले मेरे मना
बीती जावे उमर हरी नाम बिना।।


पक्षी पंख बिना हस्ती दांत बिना
पिता है पुत बिना
वेसया का पुत्र पिता बिना हिन्ना
वैसे प्राणी हरी नाम बिना
सुमिरण करले मेरे मना
बीती जावे उमर हरी नाम बिना।।









देह परान बिना रैन चन्द्र बिना
धरती मेघ बिना
जैसे पंडित वेद बिना
वैसे प्राणी हरी नाम बिना
सुमिरण करले मेरे मना
बीती जावे उमर हरी नाम बिना।।


कुप निर बिना धेनु शीर बिना
मंदिर दीप बिना
जैसे तरवर फल बिना हिना
वैसे प्राणी हरी नाम बिना
सुमिरण करले मेरे मना
बीती जावे उमर हरी नाम बिना।।


काम करोध मध लोभ विचारो
कपट छोड़ो संत जना
केवे नानक सुनो बगवांता
ओ जगत म कोई नहीं अपना
वैसे प्राणी हरी नाम बिना
सुमिरण करले मेरे मना
बीती जावे उमर हरी नाम बिना।।


सुमिरन कर ले मेरे मना
बीती जावे उमर हरी नाम बिना।।
गायक श्याम वैष्णव जी।
प्रेषक कार्तिक जनागल।










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