सोऐ को सँत जगाऐ फिर नीँद न उसको आऐ - MadhurBhajans मधुर भजन










सोऐ को सँत जगाऐ
फिर नीँद न उसको आऐ
जो जाग के फिर सो जाऐ
उसे कोन जगाऐ
हो उसे कोन जगाऐ।।
तर्ज चिन्गारी कोई भड़के।


मर मर कर हम जीते थे
जी जी कर अब मरते है
क्या बात है ओ मेरे मनवा
हरि को नही क्यो भजते है
मौका है जो सँभल जाऐ
तो नैया ये तर जाऐ
जो जाग के फिर सो जाऐ
उसे कोन जगाऐ
हो उसे कोन जगाऐ।।


इतना क्यो इतराता है
पाकर यह सुन्दर काया
यह सोच जरा ओ मनवा
जग मे तुझे कोन है लाया
हरि रूठे तो मनजाए
गुरू रूठे ठौर न पाए
जो जाग के फिर सो जाऐ
उसे कोन जगाऐ
हो उसे कोन जगाऐ।।









आजा तू गुरू चरणो मे
करदे तन मन सब अर्पण
फिर बैठ के तू सतगुरू का
मन से करले जो सुमिरन
चिँतन मे जो खो जाए
तो गुरू की दया हो जाए
जो जाग के फिर सो जाऐ
उसे कोन जगाऐ
हो उसे कोन जगाऐ।।


सोऐ को सँत जगाऐ
फिर नीँद न उसको आऐ
जो जाग के फिर सो जाऐ
उसे कोन जगाऐ
हो उसे कोन जगाऐ।।
भजन लेखक एवं प्रेषक
श्री शिवनारायण वर्मा
मोबान8818932923
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