श्री भोज बगडावत की कथा राजस्थानी कथा लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन










श्री भोज बगडावत की कथा
ए गणपत सिवरू सरस्वती शारदा
मै धरू सुण्डाला ध्यान देवी ओ
कथा केवु बगडावता की
म्हारे घट उपजावो ग्यान
देवी ओ कंठ बिराजो शारदा रे
ए बीरूडा संत विपद कुशासना
भयी होवे धर्म री हार बीरा रे
शूरा जद जद संचरे भई
अवतरे अवतार बीरा रे
भारत भूमि ऊबारने रे।।


ए बीरूडा बाघजी के बारह रानीया
ज्यारे चावा पूत चौबीस बीरा रे
बगडावत सब बाजीया रे भई
भारत में विश्वाविश बीरा म्हारा
भारत में भालो रोपीयो रे
ए कंवरा चौबीसों बगडावता को
कोई होयो ज्यारे ब्याव बीरा म्हारा
सती सरीकी बिन्दनीया ज्यारे
छायो हरख उमाव बीरा रे
आनंद बरसे आंगने रे।।


ए कंवरा दूदाजी देवास का
ज्यारी गुर्जर खटाना जात बीरा रे
साडू जिनरी लाडली जिनरे
भोजो परण्यो साथ बीरा रे
भोजो जी परण्या मालवे रे
ए भाईडा ऊंचा भाकर ओपता रे
नमोः नागपाल रो नाम बीरा म्हारा
गुर्जर गाया घेरता नित
ले शंकर रो नाम ज्याने ओ
मिलीया गुरू रूप नाथजी रे।।









ए जग मे गुरू सेवा गुरू शरने
भई सिद्ध होवे सब काज बीरा रे
शंकर प्रगट्या सामने ओर
वचन दीयो है आज बीरा म्हारा
दे दिनी माया बारह साल की रे
ए बीरूडा बल बुद्धि लक्ष्मी जटे भई
होवे राज री चाव जग में
गुरू बताया मार्गे रे भई
कदेनी अटके नाय भयो
पातो बिजर नोरखो रे।।


ए कंवरा भोज सवाई बगडावता में
भई करे सवायो काज भई रे
भूप भयो आसिन्ध को ओर
धर्यो मुकुट सिर ताज बीरा म्हारा
पाया चौबीस परगना रे
ए बीरूडा भाण तपे असमान ज्यु
भई तपे भोज रो तेज चौदस
बिखरे किरती पण हट नही
गरब गुमेज बीरा म्हारा
ओ बांको शूरो बाघ को रे।।


ए कंवरा चढतो जोबन चांद ज्यु
भई चौदस चढती प्रकाश भोजा रो
काम देव सो रूप लख अर
अप्सरा करे रे दुसहास ऐसो मुख
सुन्दर मन में मोवनो रे
ए बीरूडा ओट साबलो हद कर
तब फूल जडे मुस्कान भोजा री
लट घुंगरा री लहरता ज्यारी
पडे अनोखी ख्यात जाने कोई
सामी आयो देवता रे।।


ए बीरा चतुर विधारन पारखी ज्यारी
फिरे धरा पर आण शूरा री
पास पडोसी राजवी सब
माने भोजा की बात भई रे
धरती पर शूरो अवतर्यो रे
ए कंवरा राण भिनाय को राजवी
कोई देवे भोज ने ओट बीरा म्हारा
चौबीसों बगडावता की देखे
देखे माट मटोड भई रे
भोजा ने भाई बनावीयो रे।।


ए बीरूडा बाघ कहे बगडावता कदी
आय ने राजी होय बेटा रे
निवत जिमावो राण ने
कमी न राखो कोई दे दो
निवतो जाय भिनाय ने रे
ए कंवरा रे बाणीया ब्राह्मण खीर सु
खुश मास सु मुसलमान बेटा रे
मद सु राजी रांगडा वे
हंस हंस देवे प्राण थे तो
दारू खूब मोलावजो रे।।


ए बीरा पातु कलालन पास मे जावे
तेजो नेवो साथ पातुडी
दारू दरकार है पातु
करे गरब सु बात जन्मियो
नही पूरो दारू लेवसी रे
ए बीरूडा भोजो बिडो फेरीयो
पातु भरदे दारू लाय पातु ओ
उंद्या खुंजा लावता खाली
वेगा खूब तालाब भई रे
भोजा रो बिडो न भरे रे।।


ए मदरा राण भिनाय को डुंगरा मे बही
बही रे मदरीहार भाईडा
जमी पाताला पुग्यो दारू
शेषनाग फन जाय भई रे
नागदेव सिर ढुलीयो रे
ए भगवन नागदेव भारी रिश मे
वे पहुंचे हरि रे पास प्रभुजी
ऐसो पापी धरती पे म्हारे
तप रो किनो नाश प्रभु ओ
उनरो गरब मिटावजो रे।।


ए नागजी गुर्जर घर को डावडो विने
वर दियो भोलेनाथ नागदेव
आया कैया ओ भूल की म्हारे
समझ नी आवे बात मै तो
जाकर पतो रे लगाव सु ओ
ए प्रभुजी हरि गया वैकुण्ठ सु
धर कोढिया रो रूप प्रभु ने
पल में भोजो पहचानीयो रे
जट चरने रे लुंद हरि दे गया
माया बारह साल की रे।।


ए भोजा रे माया काया एक जुग
थाने देवु राजी होय सवाई ओ
पायजो शोहरत किरती थारो
नाम धरा पर होय मै थारे
आंगन माई जन्म सु रे
ए बीरूडा भोज सवाई भूमि पर
करे करे धर्म रो काज भई म्हारा
दान पुण्य निज हिए राखे नित
करे हरि की सांझ भई रे
गौ माता गुरू शरण में रे।।


ए भाईडा कुंवरी राज भुवाल की लियो
भोज ने हिवडे बसाय कुंवरी
भोजो खोजो बिलखती राखे
छवी ने पलक छिपाय भई रे
अद्धभुत लीला प्रेम की रे
ए कुंवरी राजा सोलंकी खिन ज्यारी
सोलह वर्ष की जीव बीरा रे
जाको नाम हो जसुमति वा
माने भोजे ने पीव ज्यारे
सांस सांस मे भोजो बसे रे।।


ए मर्दा भेजे सोलंकी खिन
भोजा ने नारेल राजवी
परण कन्या के आवजो
टिको लिजो झेल बीरा ओ
आवे जोशी आसिन्ध मे रे
ए बीरूडा सतवंती साडू सती वा
पति व्रता घर नार भोजा के
मन भावनी वो कैया होवे तैयार
भोजो जी भेजे जोशी भिनाय ने रे।।


ए कंवरा रे राण भिनाय को राजवी
वो ले टिको स्वीकार आजावु
वेगो मुहर्त ब्याव रो वो
सब विद हो जावे तैयार भई रे
अपनी उमर भूलगो रे
ए बीरूडा पीपल कुण्यु पावनी जटे
सजी राडकी जान भाईडा
सब बगडावत जाणीया जासु
हो चौगुनी शान भई रे
चले रथ घोडा पालकी रे।।


ए कंवरा बिन्द रेण को रानसी वो
परणन जाय भुवाल जाण मे
घुरवा लागा ढोल रे ओर
बटे मोतीया को थाल बीरा ओ
बगडावत बांका मारगा रे
ए बीरा रे सजती बनडी जसुमति
कहे दासी ने रे राज सखी ए
भोज बन्ना ने देख आवे
इस आग लगे आज हिरा ए
कामनी करदे कामनीया रे
ए बाईसा बनडो है के बान्दरो मै
देख्यो बूढो ढेण बाईसा
भोजा री हर छोड दो थाने
जानो पडसी रेण बाईसा
जोशी ने धोखो दे दियो रे।।


ए बनडा तोरन ऊंचो नि बढे राणा
कर लिया जतन अनेक भई
भोजा की इज्जत राखले भोले
कहे भोजा ने देख भई रे
तोरन ने तपीया राजवी रे
ए बीरा म्हारा बावली घोडी भोज की
जट मारी जबर मलाप भई रे
तोरन धय तो देवीयो रे
भोज सवाई आप सब वहा
वाह कहे बगडावता रे।।


ए हिरा ए खांडो भोज को लाय दे
थाने है बहन की आण दासी ए
नही तो विष म्हाने देय दे
पल नही राखु प्राण हिरा ए
मान छोरी आ देश में रे
ए बाईसा मन ने थोडो ढाबलो थे
करो हियो मजबूत बाईसा
भोज गुर्जर को छोकरो थे
आखिर हो रजपूत बाईसा
बिखरेला भूमि पर विघ्न की रे।।


ए हिरकी पल छिन है ये पावना
मत हिरका बकत कमान छोरी ए
मै भोजा की भार्या
मने दुजो नी आवे दाय दासी ए
मै जन्मी भोजा रे वास्ते रे
ए बाईसा जाय मिलाला भोजा सु
थे झटपट बदलो वेश बाईसा
खांडो लासा भोज के बिन
लाज न आयी लेस बाईसा
प्रीतम सु धोखो कर रयो रे।।


ए जसुमति लिनो खांडो भोज रे
संग लिया फेरा साथ सवाई
राखोला ज्यु रेवसु मती
करजो म्हारे संग घाव जसुमति
बांधे वचना मे भोज ने रे
ए जसुमति राजा भिनाय रानी से
वह शर्त रखे यु सहज राजा जी
मै जद घुंगट खोल सु बनीया
नवखंड न्यारो महल रह सु
जब तक रहसु आतरो रे।।


ए भई रे जसुमति संग हिरा के वह
रहे बाघ के बीच भई रे
फेरती माला भोज की नित
नेड बगीचा सींच जसुमति
भोज की पाग लिपायली रे
ए बीरा रे भोज कहे बगडावता सु
शस्त्र करो तैयार भाईडा
प्राण जावे पण वचन हानि
न होय गुर्जर की आण भई रे
पर घर रे गुर्जर बिन्दनी रे।।


ए भाईडा भाला अणीया विष भरो थे
देवो खांडा के धार कंवरा रे
तेज कटारा करीया सब
तोपा राखो तैयार भई रे
बिन छाया पर्वत लागसी रे
ए कंवरा सतवंती साडू सती
अरे भोजा ने समझाय सायबा
राते सपनो आवियो जानु
लागी शब्द री लाय सायबा
आवन दो गुरूजी ने तीर्थ सु रे।।


ए कंवरा मती पधारो रेण मे
आ रेण करेली देण सायबा
पर नारी की प्रीत जो
सदा रही दुख देण कंवरा
मती पधारो रेण मे रे
ए रानी जन्म मरण जश किरती
आ है हरि के हाथ परणी ए
वचन दियोडो लोबता
अखी लाजे गुर्जर जात रानी ए
जानो पडसी रेण मे रे।।


ए सायबा गुरू नारी सुत भार जह ओर
धर्म बाई की नार कंवरा ए
जहाँ पर नियत डोलता ज्यारो
डूबे मिनख जमार सायबा
सत्त मत छोडो बगडावता रे
ए रानी ए शरणागत की सहायता है
क्षत्रिय रो सिन्गार साडू ए
करे समर्पण त्याग सब विन
देवा कैया दुखदार रानी ए
भोजो वचन मे आ गयो रे।।


ए सायबा ओ हाड मास ओर चामडा सु
कैया लगायी प्रीत परण्या ओ
हरि सु हेत लगावता तो
जाय जमारो जीत परण्या ओ
ऐसी कोई काई टूटगी ओ
ए साडू ए पिवत जल गले दुखे ज्यारे
पलक झुके निज गाल रानी ए
मृग नेनी मधुवासनी
रूप ने मती दे गाल रानी ए
जोगी तपस्वी रो मन हरे रे।।


ए कंवरा ए अनिति से जाण है रे
राज तेज ओर वंश सायबा
तीनो तारा दे गया कौरव रावण कंस
सायबा मत बीज बोवो विघ्न को ओ
ए बीरूडा जल बिन तडपे माछली ज्यु
तडपे जसुमति नार भई रे
पलक बिछाया मारगा रे
भोजा को इंतजार भई रे
साचा बाचा कद करो जी।।


ए हिरा ए सेजा लागे सूल ज्यु ओ
चंदो देह ने जलाय दासी ए
मीठा कुरवा तिरीया मारे
विरह आग लगाय भोजो ओ
काई म्हाने भूलगो रे
ए दासी ए लाय विष म्हाने देय दे
देवु राजा ने मार छोरी ए
भाग चला आसिन्ध मे म्हारो
जन्म जमारो जाय दासी ए
देह भोज ने सौंप दू रे।।


ए बाईसा पाप काया के लागसी
मत घालो मिनख रे घात बहना ओ
घर घराणो माँ दूध लजसी
लाजे नारी री जात बाई ए
भव भव मे दिशो भटकता रे
ए छोरी ए ऊंची चढजा डागले
जद आवत दिखे भोज छोरी ए
या मै ऊंची चढ गिरू
मिटे हमेशा रो रोग छोरी ए
भोजा बिन दोरो जीवनो रे।।


ए हिरा ए कुटी एक पटायदे रे
देवु परवानो भेज बाई ए
झीना लिख दू ओलबा देवी
कैया लगायी जेज खोजु
गुर्जर अनिवार्य रे
ए बाईसा तीन दिना रो कोल करीयो
भूले छछमास बाईसा
निसरा दर सु आज तक थे
कैया करो विश्वास बाईसा
भोज ने तू भूल जा रे।।


ए बीरूडा फौजा आयी भोज की ओर
घेर्यो शहर भिनाय बीरा रे
भोज सवाई जसुमति वहा
निकल शहर सु जाय भई रे
आपस में फौजा भिड गया रे
ए शूरा गाजर मूली ज्यु कटे रे
अनगिनत वीर अपार बीरा रे
चम चम चमके तेजना करे
तोपा गोला बोछार भई रे
मगरे महाभारत मचीयो रे।।


ए भाईडा लाशा पर लाश गिरे
मच रयो हाहाकार रण में
हाथी घोडा कट रया ज्यारेे
भरन मंडियों त्यौहार भई रे
डुंगरीया लाग्या डोलवा रे
ए समरा भेरूडा संग भूतडा नाचे
करे है किलकार जंग
पेरे माला मुंड की काली
करीयो रक्त ने सिन्गार भई रे
खप्पर वाली खप्पर भरे रे।।


ए युद्ध घिसे लाशा गिदडा
अरे गीरद चील मंडराय रण में
लाली लुकड जर खंडावे
भोज झपट ने खाय भई रे
लोही रा झरना झर रया रे
ए शूरा मुंड कट्या दिखे मुलकता
ओर धड तलवार चलाय झुंजारा
बांटा डाल पर रूकडा
अरे काटत बलीता जाय झुंजे
बगडावत रे शूरमा रे।।


ए शूरा एक एक गुर्जर कट गया
धिन बगडावत फौज भई रे
हिरा संग कटी जसुमति रयो
झुंज सवाई भोज भई रे
बिना शिश ही लड रयो रे
ए रामजी रोग मिटे नही भूमि रो
थे जबर बनायो जोग प्रभुजी
नित नारी की राड़ मे भई
कटे हमेशा लोग प्रभुजी
अजब खेल है आपरो रे।।


ए बीरूडा धिन सवाई भोज ने थारी
धिन धिन गुर्जर जात शूरा रे
ज्या घर जन्मीया देव धणी
उगी सोना री प्रभात बीरा रे
देव अवतरीया भोज के रे
ए बीरूडा करणीसुत आ कथा लिखी
ज्याने प्रकाश माली गाय बीरा म्हारा
जो भी सुनसी प्रेम सु वीरे
आनंद मन में छाय ज्याने
घणो रंग बगडावता रे
थाने नमन् करा वीर गुजरा रे
थे अमर रहो बगडावता रे।।
श्री भोज बगडावत की कथा समाप्त।
गायक प्रकाश माली जी।
प्रेषक मनीष सीरवी।
रायपुर जिला पाली राजस्थान
9640557818










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