शंकर थाने के के जीभ म्हारी घसगी भांग पीणे री काई जचगी - MadhurBhajans मधुर भजन










शंकर थाने के के जीभ म्हारी घसगी
थारे भांग पीणे री काई जचगी।।
श्लोक शिव समान दाता नहीं
विपद विदारण हार
लज्जा मोरी राखियो
शिव नंदी के असवार।
शंकर थाने के के जीभ मारी घसगी
थारे भांग पीणे री काई जचगी।।


धीरेधीरे बोल पर्वता तू है मारी राणी
गजानंद ने संग में लेले बोली मीठी बाणी
मारे लहर लगी जमुना तट की
थारे भांग पीणे री काई जचगी।।









थे तो मारा भोला शिवजी नित्य की पीओ भंग
प्रभाते पीहर उड़ जासु होगी मैं तो तंग
मारे हियामे करोती धसगी
थारे भांग पीणे री काई जचगी।।


भांग पीणे रो भोला शंकर नसों पड़गो खोटो
गजानंद किया छोडू ओ तो बालक छोटो
अब बात कोनी है मारे बस की
थारे सागे चालुली मारे जचगी।।


रामनिवास सतगुरु शरण चरणा चित लगाऊं
नैया पार करो कब मेरी लीला थारी गाऊं
अब बात कलेजा माही खटकी
थारे भांग पीणे री काई जचगी।।


शंकर थाने के के जीभ म्हारी घसगी
थारे भांग पीणे री काई जचगी।।
स्वर रामनिवास जी राव।
प्रेषक सुभाष सारस्वत काकड़ा।
मोबाइल 9024909170










shankar thane ke ke jibh mhari ghasgi lyrics