संध्या ओ आरती सुमिरन होवे लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन










संध्या ओ आरती सुमिरन होवे
दोहा संध्या सुमिरण आरती
भजन भरोसे दास
मनसा वाचा कर्मणा
होत विघ्न को नास।


संध्या ओ आरती सुमिरन होवे
सुमिरन किया आनन्द फल होवे।।


पहली ओ आरती प्रेम प्रकाशा
कर्म भर्म का करीया ओ नाशा
संध्या ओ आरती सुमिरण होवे
सुमिरन किया आनन्द फल होवे।।









दुजी ओ आरती दिल आय देवा
तनमनधन से करलो री सेवा
संध्या ओ आरती सुमिरण होवे
सुमिरन किया आनन्द फल होवे।।


तीजी ओ आरती तीर गुण पूजे
सतगुरु ज्ञान अगोतर पुजे
संध्या ओ आरती सुमिरण होवे
सुमिरन किया आनन्द फल होवे।।


चौथी ओ आरती चारों जुग पुजा
गुरु के सम्मान और नहीं दुजा
संध्या ओ आरती सुमिरण होवे
सुमिरन किया आनन्द फल होवे।।


पांचवी आरती पद निर्माणा
केवे कबीरमा सुणो धर्मी दासा
यह हंसा सत लोक निवासा
संध्या ओ आरती सुमिरण होवे
सुमिरन किया आनन्द फल होवे।।


संध्या ओ आरती सुमिरण होवे
सुमिरन किया आनन्द फल होवे।।
गायक जगदीश राजु बेरवा।
चारभुजा साउंड जोरावरपुरा।










sandhya aarti sumiran hove lyrics