साधो भाई रत्न हाथ में आयो भजन लिरिक्स एवं दुर्लभ सवैया - MadhurBhajans मधुर भजन
साधो भाई रत्न हाथ में आयो
प्रश्न कौन तृण से तुच्छ
कौन सुमिरन से प्यारो
कौन दूध से स्वेत
कौन काजल से काळो।
कौन सूरज से तेज
कौन मद पिये से मातो
कौन लोह से कठोर
कौन अग्नि से तातो।
डंक से कड़वो कौन हैं
सीधो पवन से कौन चले
विक्रम पूछे बेताल ने
महाराज शक्कर सू पहला कौन गळे।
उत्तर अंहकार हैं तृण से तुच्छ
प्राण सुमिरन से प्यारो
धर्म दूध से स्वेत
कलंक काजल से काळो।
सती सूरज से तेज
वैरागी मद पिये से मातो।
कृपण लोह से कठोर
क्रोध अग्नि से तातो।
डंक से कडवो कटु शब्द हैं
सीधो पवन सू मन चले
बेताल कहे सुणो विक्रम
शक्कर सू पहला सज्जन गळे।
गुण बिन ठाकर ठीकरी
गुण बिन नार कुनार
गुण बिन चंदन है लाकड़ी
गुण बिन मित्र व्यवहार।
अति मधुर अति सुंदरी
अति गुण सीता नार
दसकंधर चित चढ़ गई
अति मत दीजो रे किरतार।
मीठा जी बोलण निव चलण
पर ओगण ढकलीन
ए तीनों ही हैं चंगा नानका
चौथो हाथों दीन।
सो विरला संसार
सभा में बोले मीठा
वे विरला संसार
देख कर करे अदीठा।
सो विरला संसार
नेह निर्धन सू पाले
सो विरला संसार केयो
अण केयो संभाले।
जग जीवण रण थम्भणा
बच चाले पर मार
कवि गीध कहे रे सुणो गुणी जना
एतो विरला हैं संसार।
एक को छोड़ दूजे को रटे
रसना जो कटे उस लब्बर की
अब तो गुणीया दुनिया को रटे
सिर बाँधत पोट अटब्बर की।
कवि गंग तो एक गोविंद रटे
कुछ संक न मानत जब्बर की
जिनको हरि संग प्रीत नहीं
सो करो मिल आस अकबर की।
कण ही कण को लालचात फिरे
सठ जाचत हैं जन ही जन को
तन को तन को अति सोच करे
नित खात रहे अन्न ही अन्न को।
मन की मन की तृष्णा न मिटी
पुनि धावत हैं धन ही धन को
क्षण ही क्षण सुंदर देह घटी
कबहु न गयो वन ही वन को।
अवधूत कहो रजपूत कहो
जुलाहा कहो कोउ
काहू की बेटी से बेटो न बिहावणो
काहू की जाति बिगाड़ना सोहु।
तुलसी सरनाम गुलाम हैं सिर्फ राम को
जाको रुचे सो कछु होउ
माँगत खाय मंदिर में पौढ़गो
न लेणें को एक न देणे को दोउ।
कर नेकी कर से पर घर डर से
पाक नजर से कर प्रीति
जप नाम जिगर से बाली उम्र से
जस ले जर से मन जीती।
गम भीड़ सदर से रहो सब्र से
मिले उदर से परवाना
चित चेत स्याना फिर नहीं आना
जग में आखिर मर जाना।
मद ना कर मन में मिथ्या धन में
जोर बदन में यौवन में
सुख हैं न स्वप्न में जीवन जन में
जो चपला घन में छिन छिन में।
तज देर बदन में द्वेष नयन में
मत तू मन को तरसाना
चित चेत स्याना फिर नहीं आना
जग में आखिर मर जाना।
सब झूठा भाई बाप बड़ाई
झूठी माई बाजाई
झूठ पितराई झूठ जंवाई झूठ
लुगाई ललचाई
अंत जुदाई हैं झूठ सगाई
अंत जुदाई देह जलाई शमसाना।
चित चेत स्याना फिर नहीं आना
जग में आखिर मर जाना।
दुनिया दोरंगी तर्क तरंगी
स्वार्थ संगी एकांगी
होजा सत्संगी दूर कुसंगी
गृह नटङ्गी जम जंगी पिंगल परसंगी
रहे उमंगी छंद त्रिभंगी सरसाना
चित चेत स्याना फिर नहीं आना
जग में आखिर मर जाना।
कहते है लोग जिनको
तात मात भ्रात नाती
अंत समय साथी एक
दीन को दयाल हैं
अनहड़ पंख आठ हाथी
अजगर आहार पाती
कीड़ी कण रोज खाती
सबका ख्याल हैं।
सिंघ को शिकार देता
रोजी रोटी कार देता
हंस मोती धार देता
उनकी ये चाल हैं
जप रट एक नाम छोड़ दे
उसी पे काम
आवेलो सब छोड़
काम दीन को दयाल हैं।
करत प्रपंच बन्दा
इण पाँचों के वश भयो
पर दारा हरत में
लानत हैं बुराई को।
पर धन हरे पर जीव की करत घात
मद मांस खाय लवलेश न भलाई को।
होवेगों हिसाब तब मुख से न हो जवाब
कहत सुंदर लेखों होवेला राई राई को।
यहां तो करे विलास
यम की ना तोहे त्रास
अरे वहाँ पर हैं कोनी भाया
राज पोपा बाई को।
भजन
साधो भाई रत्न हाथ में आयो
अरे म्हाने सतगुरु सहज बतायो।।
मोह ममता ने म्हारी दूर भगाई
जद ज्ञान भाण दर्शायो
अपणो रूप आप माही दर्शयो
दूजो हो सो मिटायो।।
मुझ में जगत जगत में मैं हूँ
ये सब रूप लखायो
मैं मेरे को मान कर बैठो
म्हारो तन में अभिमान मिटायो।।
सत्संग माही अमृत रस बरसे
मैं पीवत ख़ूब छकायो
छाक गयो तब सोय गयो री
मैं जाग्यो तो फिर भर पायो।।
नाथ जांलधर दादा गुरु हमारे
मैं तो संत शरणागत आयो
देवनाथ गुरु म्हाने मिल्या
म्हारे भरम दूर भगायो।।
साधो भाई रत्न हाथ में आयो
अरे म्हाने सतगुरु सहज बतायो।।
स्वर श्री प्रेमदान जी चारण।
प्रेषक रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052
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sadho bhai ratan hath me aayo bhajan lyrics