गोबिन्द थे छो दयानिधाण़ झोळी भर द्यो भिच्छुक जाण़ - MadhurBhajans मधुर भजन










गोबिन्द थे छो दयानिधाण़
झोळी भर द्यो भिच्छुक जाण़
राखो घर आयां को माण़
मैं सुणावूं बिण़ती
सुणावूं बिण़ती
मैं सुणावूं कितण़ी।।


आप बिराजो मन्दर मं
साम्हां नै चन्दर म्हैल
राधे जी नै लेर बाग मं
रोज करो छो सैल
जैपर सुन्दर राजस्थाण़
थां सम कोई नहीं धनवाण़
राजनपति राजा भगवाण़
मैं सुणावूं बिण़ती।।१


बचपन बीत जुवानी बीती
भोत घणा दुःख झेल्या
आप जस्या कै पानै फिर भी
रात्यूं पापड़ बेल्या
थां सम कोई नहीं चतर सुजाण़
कद तांइ टूटी रहली छाण़
बंगलो दे द्यो आलिशाण़
मैं सुणावूं बिण़ती।।२


बडा लोक सांची क्हैवै छा
दीपक तळै अंधेरा
घर का पूत कंवारा डोलै
पाड़ोसी रा फेरा
मैं भी पक्की लीन्हीं ठाण़
छोडूं नहीं थां को अस्थाण़
चाये कद भी निखळै प्राण
मैं सुणावूं बिण़ती।।३









थे छो गोबिन्द पिता म्हां का
श्रीराधा जी माई
करद्यो बेड़ो पार दास को
अंईंया झांको कांईं
थां की सबसूं ऊंची साण़
साफ करो सारो तुफाण़
मैं भी आयो छूं मेहमाण़
मैं सुणावूं बिण़ती।।४


मैं गरजी अरजी कर हारयो
आप मूंद लिया काण़
मरतां दम तक कहतो रहस्यूं
बणया रहवो जिजमाण़
आ गोपाळ छै अक्कऴवाण़
थां की महिमा करी बखाण़
सुणतां रईज्यो म्हां की ताण़
मैं सुणावूं बिण़ती।।५


गोबिन्द थे छो दयानिधाण़
झोळी भर द्यो भिच्छुक जाण़
राखो घर आयां को माण़
मैं सुणावूं बिण़ती
सुणावूं बिण़ती
मैं सुणावूं कितण़ी।।
भजन रचयिता श्रीगोपाल जी।
स्वर श्रीमनीष जी शर्मा जयपुर
प्रेषक विवेक अग्रवाल।
9038288815










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