पंख फसा के पछिताई रे माखी यूँ लोभ में - MadhurBhajans मधुर भजन
पंख फसा के पछिताई रे
माखी यूँ लोभ में
सिर धुन धुन कर पछिताई रे।।
तर्ज पंख होते उड़ आती रे।
एक दिन मदारी जँगल मे आया
बानर को दाने का लोभ दिखाया
सामने उसके रख कर घड़े को
उसमे कुछ दानो को गिराया
देखा बानर ने कोई नही है
जा करके अपना हाथ फँसाया
फँस करके लोभ मे
सिर धुन धुन कर पछिताई रे
पंख फँसा के पछिताई रे
माखी यूँ लोभ में
सिर धुन धुन कर पछिताई रे।।
एक तोते को गुरू ने सिखाया
फँसा वही जो लालच मेआया
वन मे शिकारी एक दिन जो आया
जाल मे पक्षियो को फँसाया
उन सब मे एक तोता वही था
जिसने गुरूवाणी को भुलाया
फँस करके लोभ मे
सिर धुन धुन कर पछिताई रे
पंख फँसा के पछिताई रे
माखी यूँ लोभ में
सिर धुन धुन कर पछिताई रे।।
भजले हरि को ओ मनवा प्यारे
समझो अपने गुरू के इशारे
रिश्ते नाते झूठे है सारे
गुरु बिन कोई न भव से उबारे
दी जो अमानत तुझको गुरू ने
उसको जग मे यूँ न लुटा रे
फँस करके लोभ मे
सिर धुन धुन कर पछिताई रे
पंख फँसा के पछिताई रे
माखी यूँ लोभ में
सिर धुन धुन कर पछिताई रे।।
पंख फसा के पछिताई रे
माखी यूँ लोभ में
सिर धुन धुन कर पछिताई रे।।
भजन लेखक एवं प्रेषक
श्री शिवनारायण वर्मा
मोबान8818932923
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