नुगरा कोई मत रहना जी नर रे नारण री देह बनाई - MadhurBhajans मधुर भजन










नुगरा कोई मत रहना जी
दोहा नुगरा नर तो मति मिलो
ने पापी मिलो रे हजार
क्योकि एक नुगरा रे शीश पर
लख पापियों रो भार।।
नर रे नारण री देह बनाई
नुगरा कोई मत रहना जी
नुगरा मिनक तो पशु बराबर
उन रा संग नहीं करना जी
राम भजन में हालो मेरा हंसा
इन जग में जीवना थोड़ा रे हा।।


अरे आड़ा वरन री गायो गोडाऊ
एक बार तन में लेवना जी
मन ने मुक्ते ने माखन लेना
बर्तन उजला रखना जी
राम भजन में हालो मेरा हंसा
इन जग में जीवना थोड़ा रे हा।।









अरे अगलो आवे अगल सरूपी
अगल सरूपी रेवना जी
थोड़ो आगे अजुरो ही रेना
सुन सुन वचन लेवना जी
राम भजन में हालो मेरा हंसा
इन जग में जीवना थोड़ा रे हा।।


काशी नगर में रेवता कबीर सा
वे कोरा कागा भनता जी
सारा संसारिया में धरम दिलायो
वे निरगुण माला फेरता जी
राम भजन में हालो मेरा हंसा
इन जग में जीवना थोड़ा रे हा।।


इन संसारिया में आवणो जावणो
बैर किसी से मत रखना जी
केवे कमाल कबीर सा री छेली
अरे फेर जनम नहीं लेवणा जी
राम भजन में हालो मेरा हंसा
इन जग में जीवना थोड़ा रे हा।।


नर रे नारण री देह बनाई
नुगरा कोई मत रहना जी
नुगरा मिनक तो पशु बराबर
उन रा संग नहीं करना जी
राम भजन में हालो मेरा हंसा
इन जग में जीवना थोड़ा रे हा।।
स्वर जोगभारती जी देवकी।
प्रेषक जितेंन्द्र गहलोत।
धुमबड़िया 8892357345










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