मुखड़ा क्या देखे दर्पण में तेरे दया धर्म नहीं मन में लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन










मुखड़ा क्या देखे दर्पण में
तेरे दया धर्म नहीं मन में
तेरे दया धर्म नहीं मन में
मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे।।


कागज की एक नाव बनाई
छोड़ी गहरे जल में
धर्मी कर्मी पार उतर गया
पापी डूबे जल में
मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे।।


खाच खाच कर साफा बंदे
तेल लगावे जुल्फन में
इण ताली पर घास उगेला
धेन चरेली बन मे
मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे।।


आम की डाली कोयल राजी
सुआ राजी बन में
घरवाली तो घर में राजी
संत राजी बन में
मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे।।









मोटा मोटा कड़ा पहने
कान बिदावे तन में
इण काया री माटी होवेला
सो सी बीच आंगन में
मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे।।


कोडी कोडी माया जोड़ी
जोड़ रखी बर्तन में
कहत कबीर सुनो भाई साधो
रहेगी मन री मन में
मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे।।


मुखड़ा क्या देखे दर्पण में
तेरे दया धर्म नहीं मन में
तेरे दया धर्म नहीं मन में
मुखड़ा क्या देखे दर्पण मे।।
स्वर रामनिवास जी राव।
प्रेषक सुभाष सारस्वा नोखा काकड़ा
9024909170










mukhda kya dekhe darpan mein lyrics in hindi