मैं तो अमर चुनड़ी ओढू राजस्थानी मीराबाई भजन - MadhurBhajans मधुर भजन
मैं तो अमर चुनड़ी ओढू
श्लोक मीरा जनमी मेड़ते
वा परणाई चित्तोड़
राम भजन प्रताप सु
वा शक्ल सृष्टि शिरमोड
शक्ल सृष्टि शिरमोड
जगत मे सहारा जानिये
आगे हुई अनेक कई बाया कई रानी
जीन की रीत सगराम कहे
जाने में खोर।
तीन लोक चौदाह भवन में
पोछ सके ना कोई
ब्रह्मा विष्णु भी थक गया
शंकर गया है छोड़।
धरती माता ने वालो पेरु घाघरो
मैं तो अमर चुनड़ी ओढू
मैं तो संतो रे भेली रेवू
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
चाँद सूरज म्हारे अंगडे लगाऊ
में तो झरणा रो झांझर पेरु
मैं तो संतो रे भेली रेवू
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
नव लख तारा म्हारे अंगडे लगाऊ
मैं तो जरणा रो झांझर पेरु
मैं तो संतो रे भेली रेवू
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
नव कोली नाग म्हारे चोटीया सजाऊ
जद म्हारो माथो गुथाऊ
मैं तो संतो रे भेली रेवू
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
ग्यानी ध्यानी बगल में राखु
हनुमान वालो कोकण पेरू
मैं तो संतो रे भेली रेवू
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
भार सन्देश में अदकर बांदु
मैं डूंगरवाली डोडी में खेलु
मैं तो संतो रे भेली रेवू
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
दोई कर जोड़ एतो मीरो बाई बोले
मैं तो गुण सावरिया रा गावु
मैं तो संतो रे भेली रेवू
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
धरती माता ने वालो पेरु घाघरो
मैं तो अमर चुनड़ी ओढू
मैं तो संतो रे भेली रेवू
आधु पुरुष वाली चैली जी।।
श्रवण सिंह राजपुरोहित द्वारा प्रेषित
सम्पर्क 91 9096558244
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