क्या वह स्वभाव पहला सरकार अब नहीं है भजन लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन










क्या वह स्वभाव पहला
सरकार अब नहीं है
दीनों के वास्ते क्या
दरबार अब नहीं है।।


या तो दयालु मेरी
दृढ़ दीनता नहीं है
या दीन कि तुम्हें ही
दरकार अब नहीं है
जिससे कि सुदामा
त्रयलोक पा गया था
क्या उस उदारता में
कुछ सार अब नहीं है।
क्या वह स्वभाव पहलां
सरकार अब नहीं है
दीनों के वास्ते क्या
दरबार अब नहीं है।।


पाते थे जिस ह्रदय का
आश्रय अनाथ लाखों
क्या वह हृदय दया का
भण्डार अब नहीं है
दौड़े थे द्वारिका से
जिस पर अधीर होकर
उस अश्रु बिन्दु से भी
क्या प्यार अब नहीं है।
क्या वह स्वभाव पहलां
सरकार अब नहीं है
दीनों के वास्ते क्या
दरबार अब नहीं है।।


क्या वह स्वभाव पहला
सरकार अब नहीं है
दीनों के वास्ते क्या
दरबार अब नहीं है।।







स्वर धीरज कान्त जी।
रचना श्री बिंदु जी महाराज।










kya vah swabhav pehla sarkar ab nahi hai lyrics