कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार भजन लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन










कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
मोहे चाकर समझ निहार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरें द्वार।।


तू जिसे चाहे ऐसी नहीं मैं
हाँ तेरी राधा जैसी नहीं मैं
फिर भी हूँ कैसी कैसी नहीं मैं
कृष्णा मोहे देख तो ले एक बार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरें द्वार।।


बूँद ही बूँद मैं प्यार की चुन कर
प्यासी रही पर लायी हूँ गिरिधर
टूट ही जाए आस की गागर
मोहना ऐसी कांकरिया नहीं मार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरें द्वार।।


माटी करो या स्वर्ण बना लो
तन को मेरे चरणों से लगालो
मुरली समझ हाथों में उठा लो
सोचो ना कछु अब हे कृष्ण मुरार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरें द्वार।।









कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार
मोहे चाकर समझ निहार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरें द्वार।।
लेखक मजरूह सुल्तानपुरी जी।
प्रेषक हरिओम गलहोत्रा
8427905234










kanha kanha aan padi main tere dwar lyrics in hindi