कहाँ जा छुपे हो प्यारे कन्हैया यहाँ लाज मेरी लूटी जा रही है - MadhurBhajans मधुर भजन










कहाँ जा छुपे हो
प्यारे कन्हैया
यहाँ लाज मेरी
लूटी जा रही है।।
तर्ज तुम्ही मेरे मंदिर।
भजन द्रोपदी चिर हरण के सन्दर्भ में



कहाँ जा छुपे हो
प्यारे कन्हैया
यहाँ लाज मेरी
लूटी जा रही है
जुए में पति मेरे
हारे है बाजी
सभा बिच साड़ी
खींची जा रही है
कहाँ जा छुपे हो
प्यारे कन्हैया
यहाँ लाज मेरी
लूटी जा रही है।।


शौहरत थी जिनकी
सारे जहाँ में
झुकाता था सर जिनको
सारा जमाना
देखो समय आज
बदला है कैसा
की वीरों की गर्दन
झुकी जा रही है
कहाँ जा छुपे हों
प्यारे कन्हैया
यहाँ लाज मेरी
लूटी जा रही है।।









पितामह गुरु द्रोण
कृपाचार्य आदि
दया धर्म हे नाथ
सबने भुला दी
बने है अधर्मी
सभी इस सभा में
किसी को ना मुझपे
दया आ रही है
कहाँ जा छुपे हों
प्यारे कन्हैया
यहाँ लाज मेरी
लूटी जा रही है।।


सुनी टेर श्यामा
जब द्रोपती की
उन्हें याद आई
अपने वचन की
ना की देर पल की
सभा में पधारे
हया शर्म जहाँ
लूटी जा रही थी
कहाँ जा छुपे हों
प्यारे कन्हैया
यहाँ लाज मेरी
लूटी जा रही है।।


खेंच ना सका चिर
दुशाशन भी हारा
ना समझी थी मोहन मैं
इशारा तुम्हारा
ये साड़ी के हर तार
में तुम छिपे हो
इसलिए ये साडी
बड़ी जा रही है
कहाँ जा छुपे हों
प्यारे कन्हैया
यहाँ लाज मेरी
लूटी जा रही है।।


शरण में तेरी जो भी
इक बार आता
जहां का कोई गम ना
उसको सताता
शर्मा के सर पर
प्रभु हाथ रख दो
ये मझधार नैया
मेरी आ रही है
कहाँ जा छुपे हों
प्यारे कन्हैया
यहाँ लाज मेरी
लूटी जा रही है।।


कहाँ जा छुपे हो
प्यारे कन्हैया
यहाँ लाज मेरी
लूटी जा रही है
जुए में पति मेरे
हारे है बाजी
सभा बिच साड़ी
खींची जा रही है
कहाँ जा छुपे हो
प्यारे कन्हैया
यहाँ लाज मेरी
लूटी जा रही है।।










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