कागज मंड गयो रे कर्मा को अब तेरो कैसे मिटे दुखड़ों लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन
कागज मंड गयो रे कर्मा को
दोहा तारा की ज्योति में चंद्र छिपे ना
सूर्य छिपे ना बादल छाया
रण चड़िया रजपूत छिपे ना
दातार छिपे ना घर याचक आया।
चंचल नारी के नैण छिपे ना
प्रीत छिपे ना पीठ दिखाया
कवि गंग कहे सुनो सा अकबर
कर्म छिपे ना भभूत लगाया।
कागज मंड गयो रे कर्मा को
अब तेरो कैसे मिटे दुखड़ों।।
थारा मारा में रह गयो रे भाया
उलझ रयो तगड़ो
अपना स्वार्थ खातिर करतो
भाइया से झगड़ो
कागज मंड्गयो रे कर्मा को
अब तेरो कैसे मिटे दुखड़ों।।
सुकरत काम करियो नहीं
हरि से मोड लियो मुखड़ो
करडावण में सुखा ठूठ जू
रहे सदा अकड़ो
कागज मंड्गयो रे कर्मा को
अब तेरो कैसे मिटे दुखड़ों।।
जोबन चौकड़ी चुक गयो रे
हाथ लियो लकड़ो
चलणो दूर रयो दिन थोड़ो
हे मार्ग सकड़ों
कागज मंड्गयो रे कर्मा को
अब तेरो कैसे मिटे दुखड़ों।।
महापुरुषा की बैठ शरण में
तब सुलजे झगड़ो
भारती पूरण भलो हो जासी
संत शरण पकड़ो
कागज मंड्गयो रे कर्मा को
अब तेरो कैसे मिटे दुखड़ों।।
कागज मंड्गयो रे कर्मा को
अब तेरो कैसे मिटे दुखड़ों।।
गायक पुरण भारती जी महाराज।
8824030646
kagaj mand gayo re karma ko ab tero kaise mite dukhdo lyrics