जुग में गुरु समान नहीं दाता राजस्थानी भजन लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन










जुग में गुरु समान नहीं दाता
दोहा गुरु बिणजारा ज्ञान रा
और लाया वस्तु अमोल
सौदागर साँचा मिले
वे सिर साठे तोल।।
जुग में गुरु समान नहीं दाता
सार शबद सतगुरु जी रा मानो
सुन में जाय समाता रे
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।


वस्तु अमोलक दी म्हारा सतगुरु
भली सुनाई बांता
काम क्रोध ने कैद कर राखो
मार लोभ ने लाता
जग में गुरु समान नहीं दाता
सार शबद सतगुरु जी रा मानो
सुन में जाय समाता रे
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।









काल करे सो आज कर ले
फिर दिन आवे नहीं हाथा
चौरासी में जाय पड़ेला
भोगेला दिन राता
जग में गुरु समान नहीं दाता
सार शबद सतगुरु जी रा मानो
सुन में जाय समाता रे
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।


शबद पुकारि पुकारि केवे है
कर संतन का साथा
सेवा वंदना कर सतगुरु री
काल नमावे माथा
जग में गुरु समान नहीं दाता
सार शबद सतगुरु जी रा मानो
सुन में जाय समाता रे
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।


कहत कबीर सुनो धार्मिदासा
मान वचन हम कहता
पर्दा खोल मिलो सतगुरु से
चलो हमारे साथा
जग में गुरु समान नहीं दाता
सार शबद सतगुरु जी रा मानो
सुन में जाय समाता रे
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।


जुग में गुरु समान नहीं दाता
सार शबद सतगुरु जी रा मानो
सुन में जाय समाता रे
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
भजन प्रेषक गासीराम देवासी
रुन्दिया 7798157830










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