गुरु बिना घोर अँधेरा रे संतो भजन लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन










गुरु बिना घोर अँधेरा रे संतो
जैसे मंदिर दीपक बिना सूना
नही वस्तु का बेरा
गुरु बिना घोर अँधेरा रे संतो।।


जब तक कन्या रहे कुंवारी
नही पति का बेरा
आठ पहर वो रहे आलस मे
खेले खेल घनेरा
गुरु बिना घोर अँधेरा रे संतो।।


मिरगा की नाभी मे बसे किस्तुरी
नही मिर्ग न बेरा
गाफिल होकर फिरे जंगल मे
सुंघे घास घनेरा
गुरु बिना घोर अँधेरा रे संतो।।


पथर माही अग्नी व्यापे
नही पथर ने बेरा
चकमक चोट लगे गुरू गम की
आग फिरे चोफेरा
मिरगा की नाभी मे बसे किस्तुरी
नही मिर्ग न बेरा
गाफिल होकर फिरे जंगल मे
सुंघे घास घनेरा
गुरु बिना घोर अँधेरा रे संतो।।









मोजीदास मिल्या गुरू पुरा
जाग्या भाग भलेरा
कहे मनरूप शरण सत्गुरु की
गुरु चरना चित मेरा
मिरगा की नाभी मे बसे किस्तुरी
नही मिर्ग न बेरा
गाफिल होकर फिरे जंगल मे
सुंघे घास घनेरा
गुरु बिना घोर अँधेरा रे संतो।।


गुरु बिना घोर अँधेरा रे संतो
जैसे मंदिर दीपक बिना सूना
नही वस्तु का बेरा
गुरु बिना घोर अँधेरा रे संतो।।
















guru bin ghor andhera re santo lyrics