देख सोने का मृग माँ प्रिये जानकी भजन लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन










देख सोने का मृग माँ प्रिये जानकी
दोहा देखा ना सुना ऐसा मृग
कितना सुंदर सुगढ़ सलोना है
देखो तो सिर से पांव तलक
सारा सोना ही सोना है।
खाल लाओ उस मृग की
कुटिया की शोभा होगी
रघुवर तेरी ये जानप्रिये
तब ही जा के खुश होगी।


देख सोने का मृग माँ प्रिये जानकी
बोली कुटिया उसी से सजाऊंगी
बोली कुटिया उसी से सजाऊंगी
नही तो रामजी मैं रूठ जाऊंगी
नही तो रघुवर मैं रूठ जाऊंगी।।


जबसे मैं तो ब्याह के आई
रम गई तुझमे ओ रघुराई
मांगा कभी ना कुछ भी तुमसे
मेरे दिल की थी कठिनाई
ओ मेरे भोले सजन
लागी तुमसे लगन
ये लगन मैं सदा ही निभाउंगी
नही तो रामजी मैं रूठ जाऊंगी
नही तो रघुवर मैं रूठ जाऊंगी।।









तजकर सब सुख प्रीत में तेरी
कर दिया मैंने सबकुछ अर्पण
मन चंचल है नयन हठीले
तज नही सकते मृग आकर्षण
ओ मेरे प्यारे पिया
मैंने सच कह दिया
काज तुमसे ही ये करवाउंगी
नही तो रामजी मैं रूठ जाऊंगी
नही तो रघुवर मैं रूठ जाऊंगी।।


मैं ना सुनूँगी ना मानूँगी
कि जंगल है एक छलावा
मुझको तो बस मृग की तृष्णा
मिलके हम कुटिया को सजावां
जरा करलो जतन
ले आओ हिरन
फिर मैं रामजी मान जाऊंगी
नही तो रामजी मैं रूठ जाऊंगी
नही तो रघुवर मैं रूठ जाऊंगी।।


देख सोने का मृग मां प्रिये जानकी
बोली कुटिया उसी से सजाऊंगी
बोली कुटिया उसी से सजाऊंगी
नही तो रामजी मैं रूठ जाऊंगी
नही तो रघुवर मैं रूठ जाऊंगी।।



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