दारुडिया ने अलगो बाल रे राजस्थानी लोक गीत - MadhurBhajans मधुर भजन










दारुडिया ने अलगो बाल रे
भूड़ी आवे वास।
श्लोक राम राज में दूध मिलियो
कृष्णा राज म घी
इन कलयुग में दारु मिलियो
वीरा सोच समझ कर पी।।


दारुडिया ने अलगो बाल रे
भूड़ी आवे वास
भूड़ी आवे वास रे
तन रो कीनो नास रे
दारुडिया ने अलगो
दारुढ़िया ने अलगो बाल रे
भूड़ी आवे वास।।


सगा समन्धी आवे
वे बैठा बैठा भाले
बैठा बैठा भाले
वे सुता सुता भाले रे
दारुडिया ने अलगो
दारुढ़िया ने अलगो बाल रे
भूड़ी आवे वास।।









काम काज तो करे रे कोनी
सिधो ठेका में जावे
वेगो उठेनी ठेका में जावे
लांबी गाला बोले रे
दारुडिया ने अलगो
दारुढ़िया ने अलगो बाल रे
भूड़ी आवे वास।।


पाँव भरियो पिनो पचे
मल मूत्र में पडियो
थोड़ो पिदोनि घणो चडियो
गादा कीचड़ में पडियो रे
दारुडिया ने अलगो
दारुढ़िया ने अलगो बाल रे
भूड़ी आवे वास।।


घर मे तो खावानी कोणी
लेवे मिनकारी उधार
टाबरिया तो भूखा मरे
पचे भीख मांगणी जाये रे
दारुडिया ने अलगो
दारुढ़िया ने अलगो बाल रे
भूड़ी आवे वास।।


संत महात्मा केवे
दारुणी दोष बतावे
खबर पड़ी तो मती पियो
थारो जनम सफल हो जावे रे
दारुडिया ने अलगो
दारुढ़िया ने अलगो बाल रे
भूड़ी आवे वास।।
श्रवण सिंह राजपुरोहित द्वारा प्रेषित
सम्पर्क 91 9096558244










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