भव बिन खेत खेत बिन बाड़ी जल बिन रहत चले बाड़ी - MadhurBhajans मधुर भजन
भव बिन खेत खेत बिन बाड़ी
जल बिन रहत चले बाड़ी
बिना डोरी जल भरे कुआँ पर
बिना शीश की पनिहारी।।
सिर पर घडो घड़ा पर झारी
ले गागर घर क्यु रे चली
बिनती करु उतार बेवडो
देखत देख्या मुस्काई।।
बिना अगन से करे रसोई
सासु नणद की वो प्यारी
देखत भूख भगे स्वामी की
चतुर नार की चतुराई।।
बिना धरणी एक बाग लगायो
बिना वृक्ष एक बेल चली
बिना शीश का था एक मुर्गा
बाड़ी में चुगता घड़ीघड़ी।।
धनुष बाण ले चढ़ियो शिकारी
नाद हुआ वह बाण चढ़ि
मुर्गा मार जमी पर डारा
ना मुर्गा के चोट लगी।।
कहत कबीर सुणो भाई साधो
ये पद है निर्वाणी
इन पद री जो करे खोजना
वो ही संत है सुरज्ञानी।।
भव बिन खेत खेत बिन बाड़ी
जल बिन रहत चले बाड़ी
बिना डोरी जल भरे कुआँ पर
बिना शीश की पनिहारी।।
गायक प्रेषक श्यामनिवास जी।
9983121148
bina shish ki panihari lyrics