बिन सत्संग होवे ना ज्ञाना भजन लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन
बिन सत्संग होवे ना ज्ञाना
दोहा निर्धन कहे धनवान सुखी
धनवान कहे सुख राजा को भारी
राजा कहे चक्रवर्ती सुखी
चक्रवर्ती कहे सुख इन्द्र अधिकारी
इन्द्र कहे ब्रह्मा सुखी
ब्रह्मा कहे सुख शंकर को भारी
तुलसीदास विचार करें
सत्संग बिना सब जीव दुखारी।
बिन सत्संग होवे ना ज्ञाना
या सत्संग सुख की मूल रे
बिन सत्संग होव न ज्ञाना।।
ऋषि मुनि सब सत्संग करते
हरदम ध्यान हरि का धरते
हो बेरागी सदा विचरते
सब चित की भागे भूल हो
सत्संग में मस्ताना
बिन सत्संग होव न ज्ञाना।।
ऊंचनीच का भेद ना बंदा
कर सत्संग मिटे सब फंदा
संत शरण में उग जावे चंदा
जब खिले साधना फूल फिर
उल्टी आप घर पाना
बिन सत्संग होव न ज्ञाना।।
सागर लहर में भेद न पावे
सत्संग से यूं भेद मिटा वे
भज अति वेद मुक्त हो जावे
दे फेंक मोह की धूल
जद पावे पद निरवाना
बिन सत्संग होव न ज्ञाना।।
परमानंद भारती प्यारा
संत समागम दिया इशारा
चेतन भारती उतर भव पारा
होवे नाश इस्थूल ज्योति में
जोत समाना
बिन सत्संग होव न ज्ञाना।।
बिन सत्संग होव ना ज्ञाना
या सत्संग सुख की मूल रे
बिन सत्संग होव न ज्ञाना।।
गायक पूरण भारती जी महाराज।
प्रेषक मदन मेवाड़ी।
8824030646
bin satsang hove na gyana lyrics