भूल गया मानव मर्यादा जब कलयुग की हवा चली लिरिक्स - MadhurBhajans मधुर भजन










भूल गया मानव मर्यादा
जब कलयुग की हवा चली
धूप कपुर ना बिके नारियल
दारू बिक रही गली गली।।
तर्ज क्या मिलिए ऐसे लोगो।
देखे कलयुग बैठा मार कुंडली।


मर्यादा ना करे बड़ो की
दारू पिये भरे चिलमें
रामायण गीता ना बांचे
दिल से देख रहे फिल्मे
सांची बात लगे ह्रदय में
सबसे कह रहे बात भली
धूप कपुर ना बिके नारियल
दारू बिक रही गली गली।।


नारी अब निर्लज्ज भये
नर पाप की सीमा लांघ गए
कलयुग को तो फैशन है
बिटिया के रूपट्टा खोल भये
धर्म कर्म ओर शर्म नही है
कलयुग हो गयो बहुत बलि
धूप कपुर ना बिके नारियल
दारू बिक रही गली गली।।









मात पिता की सेवा करलो
स्वर्ग मिले ईश्वर कह रहे
सत्य वचन है ये ईश्वर के
उनपे ध्यान नही दे रहे
ध्यान दे रहे वहा जहा पर
नट नारी की कमर हली
धूप कपुर ना बिके नारियल
दारू बिक रही गली गली।।


भूल गया मानव मर्यादा
जब कलयुग की हवा चली
धूप कपुर ना बिके नारियल
दारू बिक रही गली गली।।
स्वर कु पूजा ओझा।
प्रेषक घनश्याम बागवान सिद्दीकगंज।
7879338198

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