अनमोल सवैया व दोहा का संग्रह लिखित - MadhurBhajans मधुर भजन










अनमोल सवैया व दोहा
1कहे सन्त सगराम सुण ए
धन री धणीयाणी
सुकरत कर भज राम
धोय कर बहते पाणी।
बहते जळ कर धोयले
मौकों दियो महाराज
कारज करले जीव रो
करणो हैं सो आज।
करणो हैं सो आज
काल री कोई न जाणी
कहे सन्त सगराम सुण ए
धन री धणीयाणी।।


2छह साँसो की एक पल
घड़ी एक पल साठ
आठ घड़ी का एक पहर
सगराम दास कहे आठ।
सांस सौ भर सातो ही
अठहत्तर करोड़
चौरासी लाख मिटाई
भजन बिना सब खोय दिया
अक्ल बायरी टाट।
छह साँसो की एक पल
घड़ी एक पल साठ।।


3सो विरला संसार
सभा में बोले मीठा
सो विरला संसार
देख कर करे अदीठा।
सो विरला संसार केयो
अण केयो सम्भाले।
सो विरला संसार
प्रीत निर्धन सू पाले।
जग जीवण रण थंभणा
बच चाले पर नार
कवि गिरधर कहे रे गुणीजणा
वे लाधे विरला ही संसार।।









4एक सूम सत हीन ज्याको
थू द्रव समर्पियो
सूर औऱ दातार ज्याको प्रभु
थे निर्धन कर थरपियो।
काळी कुचाल कुलखणी नार
ज्याने भर चंचल लादो
सुंदर और सुशील नार
ज्यारें संग लफरी बांध्यो।
नागर बेल निर्फल करी
और तूम्बा बेल अकारणा
कवि गीध कहे किरतार ने
तू भूल गयो रे भव तारणा।।


5कही कही गोपाल की
भई चौगुणी भूल
काबुल में मेवा किया
प्रभु बृज में किया बबूल।।


6कठिन प्रीत की रीत
कठिन तन मन वश करणो
कठिन योग जुग ध्यान
कठिन भव सागर तिरणो।
कठिन धर्म प्रतिपाल
कठिन संकट में समता
कठिन हैं पर उपकार
कठिन मन मारण ममता।
वचन निभावणो हैं कठिन
औऱ निर्धन सू नेह राखणो कठिन
कवि बेताल कहे सुण विक्रमा
ज्ञान युध्द जीतणो हैं अति कठिन।।


7अरे प्रभु किसा छुणाउ महल
महल गिरि मेरू कहावे
किसा जु गाउ गुणगान
गुण जो गांधर्व गावे।
मेलु किसो धनमाल
श्री जी चरणों आगे
किसा पखारु चरण
चरण नख गंगा लागे।
किसा पुष्प चढ़ाऊँ
सिर पर पारिजात वृक्ष तुज घरे
राजाधिराज गिरिराज जो
कवि ईसर थारी सेवा करे।।


8कहे सन्त सगराम
धणी सुण रे माया रा
कर सुकरत भज राम
भला दिन आया थारा।
दिन थारा आया भला
चूक मती इण बार
धन धरियो रह जावसी
तनड़ों होसी क्षार।
तन हो जासी क्षार
धोय कर बहती धारा
कहे सन्त सगराम
धणी सुण रे माया रा।।


9राम छाप निर्वाण हैं औऱ
के नाम की छापा सब झूठी
राम को नाम हिरदे धरले भाई
राम के नाम की बाँधलो पूठी।
राम के नाम से पत्थर तिर गया
और तैतीसौ की बंदगी छूटी
कहत कमाल कबीर सा
की लड़की यू देखत देखत लंका लूटी।।


10राम के नाम पहाड़ तिरे
अहेल्या तरी पग की रज रे
पाण्डु नार को चीर अनन्ता बढियो
जळ डूबत राख लियो गज रे।
तोड़ सरासर दो टुकड़ा किया
मिथिलेश की राख लीवी लज रे
जिनकी रिछपाल गोपाल करे
उनको बलभद्र कहाँ डर रे।।


11दया गरीबी बंदगी
समता शील सुजान
ए ते लक्षण सन्त के
कहत कबीर सूजान।।


12दीन कहे धनवान सुखी
धनवान कहे सुख राजा को भारी
राजा कहे महाराजा सुखी
महाराज कहे सुख इन्द्र को भारी।
इन्द्र कहे ब्रह्मा सुखी
ब्रह्मा कहे सुख विष्णु को भारी
तुलसीदास विचार करे
हरी भजन बिना सब जीव दुखियारी।।


13अल्प अवधि ज्यामे
भ्रम को जंजाल बहुत
करने को बहुत कुछ
कहा कहा कीजिये।
काव्य की कला अनंत
छन्द को प्रबन्ध बहु
वाणी तो अनेक चित
कहाँ कहाँ दीजिये।
पार न पुराण इको
वेद उको अंत नाही
राग तो रसीली रस
कहाँ कहाँ पीजिये।
सौ बातों री बात एक
तुलसी यू पुकारें जात
जन्म सुधारणो हैं तो
राम राम कीजिये।।


14सतगुरु मिले सुजान
श्रवण निज शब्द सुणायो।
सिर पर धरियो हाथ
भ्रम सब दूर भगायो।
हिरदे सु उपज्यो ज्ञान
ज्ञान उर अंदर लागो
कियो ब्रह्म से नेह
जगत से तोड़ियो तागों।
रामचरण यू पाविये तू बन्दा
छूटेला वाद विवाद ते
सुन्दरदास सुखी भये
यू गुरु दादू प्रसाद ते।।


15नमो श्री गुरु देवाय
नमो सतगुरु देव
नमो कर्ता अविनाशी
अनंत करोड़ हरि भक्त नाथ
नव सिद् चौरासी।
नमो पीर पैग़म्बरा
ब्रह्मा विष्णु महेश को
धरा गगन अगन पवन जळ
नमो चाँद दिनेश को।।


16एक वोही नाम तारण
करो उसको धारण
जो निवारण करेगो।
एक वोही नाम तारण
सभी काम सारण
धरो उसको धारण
जो निवारण करेगो।
नथा दन्त बाकु
दिया दूध माँ कु
खबर हैं खुदा कु
सबर जो करेगो।
तेरा ढूंढ सीना
मिटे दिल का कीना
जिन ये पेट दीना
वो आप ही भरेगो।
मुरादम कहे रे भाई
मुकनंदर के अंदर
जिन्हें टांक मारी
न टारी टरेगो।।


17गूढ़ की बात को
मूढ़ क्या जानत
कुम्भ क्या जानत
स्वेत जगह को।
प्रीत की रीत अतीत
क्या जानत
भैंस क्या जानत
खेत सगा को।
बट की बात को
जट क्या जानत
गेला क्या जानत
पाय लगा को।
गंग कहे गुण वान सुणो भाई
खर क्या जाने नीर गंगा को।।


18 दया का होसी नाश
धर्म वो जाय धरण में
पुण्य गयो पाताल
पाप भव वर्ण वर्ण में।
अब तो राजा न करे जग न्याव
प्रजा संग होत खवारी।
घर घर होसी देव
उबा नरत करे नर नारी
उल्टो दत राजा मांगे
शील संतोष किथे गयो।
कवि बेताल कहे
सुणो विक्रम समझलो कि
अब कलजुग प्रगट भयो।।


19शब्द बराबर धन नहीं
शब्द बराबर तोल
हीरा तो दामों बिके
शब्दों रो कोई तोल न मोल।।


20कोई करे उपवास
कोई अन्न खाय आलूणा
कोई खावे फळकन्द
कोई बोले केई उनमुना।
कोई ठंडे सिर राख
कोई उंदे सिर झूले
मनड़ों तो करे कुश्ती
इतरा तो मोक्ष मार्ग ने भूले।
भेक लियो अर भ्रम नहीं भागो
फिर फिर करत बकवास हैं
कहे प्रेम मुनि
निज आत्म ज्ञान बिना तो
ए सब माया रा दास हैं।।


21जड़ी बूटी जो कोई
मुल्ला बणावे
कोई भष्म बीच जाय
श्मसान जगावे
कोई तापे पंच धूणी
बतावे मन री हुली अर हूणी।
आसन मार आस न मरी
सहत भूख और प्यास हैं
कहे प्रेम मुनि भाई रे
निज आत्म ज्ञान बिना
ए सब माया रा दास हैं।।


22कुम्भ में कूप समात नहीं
सुत सिंधु समस्त चळू भरहे
गणिका सुत पद रघुनाथ गुरु
झिवरी सुत वेद ह्रदय धरहे।
मकड़ी सुत चिरंजीव मारकण्डेय
दासी सुत विधुर कृपा धरहे।
सुत होत बड़ो अपनी करणी
पृथु वंश बड़ो तो कहा करहे।

गायक श्री प्रेमदान जी चारण।
प्रेषक रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052










anmol savaiya aur doha sangrah