अगर तू चाहे जो भव तरना आ गुरू दर पे भजन - MadhurBhajans मधुर भजन
अगर तू चाहे जो भव तरना
आ गुरू दर पे
बिना वजह ही क्यो लादे
है बोझ तू सर पे।।
तर्ज तू इस तरह से मेरी जिंदगी।
मिली है तुझको ये काया
गुरु की रहमत से
मगर तू छोड़ नही पाता
अपनी आदत है
हजारो दाग लगाए
है तू चदरिया में
यूँ ही गुजरती ये जाए
तेरी उमरिया है।
अगर तू चाहे जो भव तरना
आ गुरू दर पे
बिना वजह ही क्यो लादे
है बोझ तू सर पे।।
बिना भजन के यूँ जीना
भी है कोई जीना
नही तरेगी ये नैया
किसी कैवट के बिना
गुरू शरण मे तू इकर
झुकाले सर अपना
बना सके तो बनाले
नसीब तू अपना।
अगर तू चाहें जो भव तरना
आ गुरू दर पे
बिना वजह ही क्यो लादे
है बोझ तू सर पे।।
भजेगा नाम नही तो
तरेगा तू कैसे
बचेगा यम की अदालत
से तू भला कैसे
बहुत सजाएँ मिलेगी
बहाँ गुरू के बिना
तेरी न होगी जमानत
वहां गुरू के बिना।
अगर तू चाहें जो भव तरना
आ गुरू दर पे
बिना वजह ही क्यो लादे
है बोझ तू सर पे।।
भजन लेखक एवं प्रेषक
श्री शिवनारायण वर्मा
मोबान8818932923
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agar tu chahe jo bhav tarna lyrics